देश के चहुंमुखी विकास के लिये ग्रामीण क्षेत्र का विकास होना नितान्त आवश्यक है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये स्वतंत्रता प्राप्त्ति के तीसरे दशक से ही ग्रामीण क्षेत्र के योजनाबद्ध विकास ने नया मोड़ लिया और अति पिछड़े तथा गरीबी से ग्रस्त परिवारों को सीधे लाभ पहुँचाने की दिशा में प्रयास किये गये, लेकिन राज्य में ग्रामीण विकास को और अधिक प्राथमिकता एवं विशेष महत्व देते हुए वर्ष 1971 में विशिष्ठ योजना संगठन की स्थापना की गई। वर्ष 1979 में पुनर्गठन के साथ-साथ इसका कार्य क्षेत्र बढ़ाकर इसे ''विशिष्ठ योजनाऐं एवं एकीकृत ग्रामीण विकास विभाग'' का नाम दिया गया। 1 अप्रेल, 1999 से इस विभाग का नाम ''ग्रामीण विकास विभाग'' किया गया। ग्रामीण विकास विभाग द्वारा क्रियान्वित अधिकांश योजनाओं का क्रियान्वियन जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से किया जा रहा है। अत: जिला स्तर पर समन्वय हेतु जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों का जिला परिषद में विलय करते हुये मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अधीन ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ् का गठन किया गया। इस तरह राज्य स्तर पर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज की गतिविधियों में समन्वय स्थापित करने एवं कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन के उद्देश्य से ग्रामीण विकास विभाग एवं पंचायती राज विभाग का विलय किया गया है। मंत्रिमण्डल आज्ञा संख्याा 73/2003 दिनांक 25.08.2003 की पालना में मंत्रिमण्डल सचिवालय की अधिसूचना संख्या F.27(2)Cab/2003 दिनांक 18.03.2006 एवं विभागीय परिपत्र क्रमांक एफ4 (66) पराज/पीसी/विलय/2003/638 जयपुर, दिनांक 23.03.2006 के द्वारा वर्तमान में इस विभाग का नाम ''ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग '' है। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के अधीन समस्त योजनाओं के क्रियान्वयन अतिरिक्त मुख्य सचिव , ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के माध्यम से किया जा रहा है।
विभाग द्वारा वर्ष 2021-22 में क्रियान्वित योजनाओं का उद्देश्यवार विवरण